Lekhika Ranchi

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जातक कथा संग्रह

जातक कथा संग्रह


निग्रोध मृग--

वाराणसी के वनों में कभी एक सुवर्ण मृग रहता था ।

 उसकी आँखों रत्न-सी चमकीली ; सींग रजत की कांति लिए हुए तथा उसका शरीर अन्य हिरणों से अधिक बड़ा और सुंदर था। 

वह पाँच सौ मृगों का राजा था और उसे निग्रोधराज के नाम से पुकारा जाता था।

 उसी वन में उसी के सदृश एक और हिरण रहता था। वह भी पाँच सौ मृगों का राजा था। उसका नाम साखा था।

उन दिनों वाराणसी-नरेश को हिरण का मांस बहुत प्रिय था। हर रोज उसे हिरण के मांस के नये-नये व्यंजन खाने का शौक था। 

राजा के अनुचर इससे बहुत परेशान रहते थे, क्योंकि हिरण बड़े चौकन्ने और बड़ी तेज चौकड़ियाँ होते हैं; क्षण भर में आँखों से ओझल हो जाते थे।

 अत: एक दिन राजा के आदमियों ने प्रतिदिन हिरण के पीछे न भागने का एक निदान ढूँढ़ निकाला। 
उन लोगों ने वन से नगर को जाने वाली एक पगडंडी को छोड़ सारे को चारों तरफ से घेर लिया और ढोल-बाजे के साथ वन केन्द्र को बढ़ने लगे।

 तब सारे मृग नगर को जाने वाली पगडंडी से होते हुए राजा के एक उद्यान में इकट्ठे हो गये। 

जैसे ही सारे मृग उद्यान में पहुँचे, लोगों ने उद्यान-द्वार बन्द कर दिया। उन्हीं मृगों के बीच दो स्वर्ण-मृग भी थे। 

राजा ने जब उनकी चर्चा सुनी तो स्वयं भी वह उन्हें देखने आया तथा उनकी विशिष्टता के कारण उन्हें प्राण-दान दे दिया।

उस दिन के पश्चात् जब भी राजा के अनुचर किसी हिरण को मारने आते तो उनके आगमन से डर कर हिरण जहाँ-तहाँ भाग-दौड़ करने लगते जिसके कारण एक हिरण के स्थान पर अनेक हिरण मारे जाते या घायल हो जाते।

 इस आपदा से बचने के लिए हिरणों ने एक सभा की और तय किया कि प्रतिदिन एक हिरण राजा के घात-स्थान पर स्वयं जा कर अपना बलिदान करे।

 राजा के अनुचरों को भी हिरणों के सहयोग से प्रसन्नता हुई और वे केवल आये हुए वध्य हिरण के ही प्राण हरते थे।

एक दिन एक मादा हिरणी की बारी आयी।

 उसके पेट में एक नन्हा हिरण पल रहा था। चूँकि वह साखा हिरण की झुण्ड में रहती थी इसलिए वह अपने राजा के पास जाकर अपने बदले किसी और को भेजने की प्रार्थना करने लगी।
 शाखा हिरण ने उसकी बात को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि कानून में परिवर्तन संभव नहीं था। रोती बिलखती वह हिरणी फिर निग्रोधराज के पास पहुँची और उसके सामने भी अपनी प्रार्थना दुहरायी।

 निग्रोधराज ने तब उसकी सहायता के लिए अपने प्राणों की बलि देना उचित समझा।

अगले दिन जब राजा के अनुचरों ने वध्य-स्थान पर एक स्वर्ण मृग को मरने के लिए तैयार खड़ा पाया तो उक्त घटना की सूचना तत्काल राजा को पहुँचायी।

 प्राण-दान पाकर भी वह हिरण क्यों मृत्यु के लिए तत्पर था इसका कारण राजा ने जानना चाहा।

 इसलिए उसने तत्काल घटना-स्थल पर पहुँच कर निग्रोधराज से उसकी मृत्यु की तत्परता का कारण जानना चाहा।

 निग्रोधराज ने तब उसे गर्भिणी हिरणी की कथा सुनायी। जिसे सुनकर राजा ने उसके साथ उस गर्भवती हिरणी को भी अभय-दान दिया।

 निग्रोधराज ने फिर अन्य हिरणों के विषय में पूछा कि उनके प्राणों के लिए राजा क्या करना चाहेंगे।

 राजा ने तब कहा, ” उन्हें भी प्राण-दान प्राप्त होगा”। 

निग्रोध ने पूछा, ” शेष जानवरों के प्राणों का क्या होगा?” 

राजा ने कहा, ” उन्हें भी जीवन-दान मिलेगा।”

 मृग ने फिर पंछी और जलचरों के प्राणों के विषय में भी पूछा।

 राजा ने तब अपने राज्य में रहने वाले समस्त पक्षी और मत्स्य आदि की अवध्यता की घोषणा कर दी।” 

और जब तक वह राजा जीवित रहा, उसके राज्य में किसी भी जीव-जन्तु की हत्या नहीं की गई।

****
समाप्त
साभारः जातक कथाओं से संकलित।

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